09-12-85  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

बालक सो मालिक

अव्यक्त बापदादा बोले

आज बापदादा अपनी शक्ति सेना को देख रहे हैं कि यह रूहानी शक्ति सेना मनजीत जगतजीत हैं? मनजीत अर्थात् मन के व्यर्थ संकल्प, विकल्प जीत है। ऐसे जीते हुए बच्चे विश्व के राज्य अधिकारी बनते हैं। इसलिए ‘मन जीते जगतजीत’ गाया हुआ है। जितना इस समय संकल्प-शक्ति अर्थात् मन को स्व के अधिकार में रखते हो उतना ही विश्व के राज्य के अधिकारी बनते हो। अभी इस समय ईश्वरीय बालक हो और अभी के बालक ही विश्व के मालिक बनेंगे। बिना बालक बनने के मालिक नहीं बन सकते। जो भी हद के मालिकपन का हद का नशा है उसे समाप्त कर हद के मालिकपन से बालकपन में आना है तब ही ‘बालक सो मालिक’ बनेंगे। इसलिए भक्ति मार्ग में भी कितना कोई भी देश का बड़ा मालिक हो, धन का मालिक हो, परिवार का मालिक हो लेकिन बाप के आगे सब ‘‘बालक तेरे’’ कह कर ही प्रार्थना करते हैं। मैं फलाना मालिक हूँ ऐसे कभी नहीं कहेंगे। तुम ब्राह्मण बच्चे भी बालक बनते हो तब ही अभी भी बेफकर बादशाह बनते हो और भविष्य में विश्व के मालिक या बादशाह बनते हो। ‘‘बालक सो मालिक हूँ’’ यह स्मृति सदा निर-अंहकारी, निराकारी स्थिति का अनुभव कराती है। बालक बनना अर्थात् हद के जीवन का परिवर्तन होना। जब ब्राह्मण बने तो ब्राह्मण-पन की जीवन का पहला सहज ते सहज पाठ कौन-सा पढ़ा? बच्चों ने कहा - ‘बाबा’ और बाप ने कहा - ‘बच्चा’ अर्थात् बालक। इस एक शब्द का पाठ नॉलेजफुल बना देता है। बालक या बच्चा यह एक शब्द पढ़ लिया तो सारे इस विश्व की तो क्या लेकिन तीनों लोकों का नॉलेज पढ़ लिया। आज की दुनिया में कितने भी बड़े नॉलेजफुल हों लेकिन तीनों लोकों की नॉलेज नहीं जान सकते। इस बात में आप ‘एक शब्द पढ़े’ हुए के आगे कितना बड़ा नॉलेजफुल भी - अन्जान है। ऐसे मास्टर नॉलेजफुल कितना सहज बने हो। ‘बाबा और बच्चे’ इस एक शब्द में सब कुछ समाया हुआ है। जैसे बीज में सारा झाड़ समाया हुआ है तो बालक अथवा बच्चा बनना अर्थात् सदा के लिए माया से बचना। माया से बचे रहो अर्थात् ‘हम बच्चे हैं’ - सदा इस स्मृति में रहो। सदा यही स्मृति रखो, ‘‘बच्चा बना अर्थात् बच गया’’। यह पाठ मुश्किल है क्या? सहज है ना। फिर भूलते क्यों हो? कई बच्चे ऐसे सोचते हैं कि भूलने चाहते नहीं है लेकिन भूल जाता है। क्यों भूल जाता? तो कहते बहुत समय के संस्कार हैं वा पुराने संस्कार हैं। लेकिन जब मरजीवा बने तो मरने के समय क्या करते हैं? अग्नि संस्कार करते हो ना। तो पुराने का संस्कार किया तब नया जन्म लिया। जब संस्कार कर लिया फिर पुराने संस्कार कहाँ से आये। जैसे शरीर का संस्कार करते हो तो नाम-रूप समाप्त हो जाता है। अगर नाम भी लेंगे तो कहेंगे फलाना था। है, नहीं कहेंगे। तो शरीर के संस्कार होने के बाद शरीर समाप्त हो गया। ब्राह्मण जीवन में किसका संस्कार करते हो? शरीर तो वही है। लेकिन पुराने संस्कारों, पुरानी स्मृतियों का, स्वभाव का संस्कार करते हो तब मरजीवा कहलाते हो। जब संस्कार कर लिया तो पुराने संस्कार कहाँ से आये। अगर संस्कार किया हुआ मनुष्य फिर से आपके सामने आ जावे तो उसको क्या कहेंगे? भूत कहेंगे ना। तो यह भी पुराने संस्कार, किये हुए संस्कार अगर जागृत हो जाते तो क्या कहेंगे? यह भी माया के भूत कहेंगे ना। भूतों को भगाया जाता है ना। वर्णन भी नहीं किया जाता है। यह पुराने संस्कार कह करके अपने को धोखा देते हैं। अगर आपको पुरानी बातें अच्छी लगती हैं तो वास्तविक पुराने ते पुराने आदिकाल के संस्कारों को याद करो। यह तो मध्यकाल के संस्कार थे। यह पुराने ते पुराने नहीं हैं। मध्य को बीच कहते हैं तो मध्यकाल अर्थात् बीच को याद करना अर्थात् बीच भंवर में परेशान होना है। इसलिए कभी भी ऐसी कमज़ोरी की बातें नहीं सोचो। सदा यही दो शब्द याद रखो - बालक सो मालिक। बालक पन ही मालिकपन स्वत: ही स्मृति में लाता है। बालक बनना नहीं आता?

बालक बनो अर्थात् सभी बोझ से हल्के बनो। कभी तेरा कभी मेरा, यही मुश्किल बना देता है। जब कोई मुश्किल अनुभव करते हो तब तो कहते हो - तेरा काम तुम जानो। और जब सहज होता है तो ‘मेरा’ कहते हो। मेरा-पन समाप्त होना अर्थात् बालक सो मालिक बनना। बाप तो कहते हैं बेगर बनो। यह शरीर रूपी घर भी तेरा नहीं। यह लोन मिला हुआ है। सिर्फ ईश्वरीय सेवा के लिए बाबा ने लोन दे करके ‘ट्रस्टी’ बनाया है। यह ईश्वरीय अमानत है। आपने तो सब कुछ तेरा कह करके बाप को दे दिया। यह वायदा किया ना वा भूल गये हो? वायदा किया है या आधा तेरा आधा मेरा। अगर तेरा कहा हुआ मेरा समझ कार्य में लगाते हो तो क्या होगा। उससे सुख मिलेगा? सफलता मिलेगी? इसलिए अमानत समझ तेरा समझ चलते तो बालक सो मालिक बन के खुशी में, नशे में स्वत: ही रहेंगे समझा! एक यह पाठ सदा पक्का रखो। पाठ पक्का किया ना या अपने-अपने स्थानों पर जाकर फिर भूल जायेंगे, अभूल बनो। अच्छा-

सदा रूहानी नशे में रहने वाले बालक सो मालिक बच्चों को सदा बालकपन अर्थात् बेफकर बादशाहपन की स्मृति में रहने वाले, सदा मिली हुई अमानत को ट्रस्टी बन सेवा में लगाने वाले बच्चों को, सदा नये उमंग नये उत्साह में रहने वाले बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात - कुमारियों से - यह लश्कर क्या करेगा? लश्कर वा सेना सदा विजय प्राप्त करती है। सेना विजय के लिए होती है। दुश्मन से लड़ने के लिए सेना रखते हैं। तो माया दुश्मन पर विजय पाना यही आप सबका कर्त्तव्य है। सदा अपने इस कर्त्तव्य को जान जल्दी से जल्दी आगे बढ़ते जाओ। क्योंकि समय तेज रफ्तार से आगे जा रहा है। समय की रफ्तार तेज हो और अपनी कमज़ोर हो तो समय पर पहुँच नहीं सकेंगे। इसलिए रफ्तार को तेज करो। जो ढीले होते हैं वह स्वयं ही शिकार हो जाते हैं। शक्तिशाली सदा विजयी होते हैं। तो आज सब विजयी हो?

सदा यही लक्ष्य रखो कि सर्विसएबुल बन सेवा में सदा आगे बढ़ते रहना। क्योंकि कुमारियों को कोई भी बन्धन नहीं हैं। जितना सेवा करने चाहें कर सकती हैं। सदा अपने को बाप की हूँ और बाप के लिए हूँ ऐसा समझकर आगे बढ़ते चलो। जो सेवा में निमित्त बनते हैं उन्हें खुशी और शक्ति की प्राप्ति स्वत: होती है। सेवा का भाग्य कोटों में कोई को ही मिलता है। कुमारियाँ सदा पूज्य आत्मायें हैं। अपने पूज्य स्वरूप को स्मृति में रखते हुए हर कर्म करो। और हर कर्म के पहले चेक करो कि यह कार्य पूज्य आत्मा के प्रमाण है? अगर नहीं है तो परिवर्तन कर लो। पूज्य आत्मायें कभी साधारण नहीं होती, महान होती हैं। 100 ब्राह्मणों से उत्तम कुमारियाँ हो। 100, एक-एक कुमारी को तैयार करने हैं। उनकी सेवा करनी है। कुमारियों ने क्या कमाल का प्लैन सोचा है? किसी भी आत्मा का कल्याण हो इससे बड़ी बात और क्या है? अपनी मौज में रहने वाली हो ना। कभी ज्ञान के मौज में, कभी याद की मौज में। कभी प्रेम की मौज में। मौजें ही मौजें हैं। संगमयुग है ही मौजों का युग। अच्छा- कुमारियों के ऊपर बापदादा की सदा ही नजर रहती है। कुमारियाँ स्वयं को क्या बनाती हैं यह उनके ऊपर है लेकिन बापदादा तो सभी को विश्व का मालिक बनाने आये हैं। सदा विश्व के मालिकपन की खुशी और नशा रहे। सदा अथक सेवा में आगे बढ़ते रहो। अच्छा-